व्यंग्य: खुशियों के नियम और शर्तें!
नीरज बधवारगर्मी से बेहाल शख्स टीवी पर जब सुनता है कि फलां जगह मॉनसून पहुंच चुका है तो वो बेसब्र हो उठता है। ऑफिस से लौटते फ्रसर्ट्रेटेड आरजे का बजाया रिमझिम गिरे सावन सुन ले, तो एक पल में आपे और कपड़ों से बाहर हो जाता है। उसकी बेचैनी बढ़ने लगती है। आखिरकार जब पहली बारिश होती है तो वह ओवरएक्साइटमेंट में ओवरवेट बीवी के साथ टैरेस पर जा 'घनन-घनन घिर घिर आए बदरा' पर नागिन डांस करने लगता है। बिना इसकी परवाह किए कि ज़ोर से नाचने पर वह उसी ओवरवेट बीवी के साथ छत का सीना चीरते हुए सप्तनीक मकान मालिक के बाथरूम में गिर सकता है। मगर यही आदमी बादलों के छंटने और नागिन डांस का ज़हर उतरने के बाद अगले दिन जब ऑफिस जाता है तो देखता है कि कायनात की सारी गंदगी पूरी उमंग और यौवन के साथ हर जगह उसका स्वागत कर रही है। नालियों के दोनों तरफ का पानी ओवरफ्लो हो सड़क को आलिंगन दे रहा है। वही पानी सड़क के माथे पर कलंक के रूप में मौजूद गड्ढों को भर चुका है। वहां से गुज़रने वाले लोगों का उन गड्ढों में गिरना या न गिरना, अब इस पर निर्भर करता है कि उनका इस हफ्ते का राशिफल क्या है? उनकी कुंडली में राहू कौनसे घर में बैठा है या नॉर्मल बाबा के कहे मुताबिक उन्होंने लाल रंग की चिड़िया को हरी चटनी के साथ मटर मशरूम की सब्ज़ी खिलाई या नहीं। इस देश में खुशियों का यही नियम है। उनके साथ शर्तें जुड़ी रहती हैं। ऐसा नहीं कि बारिश आई। आपने प्याज़ के पकौड़े खाते हुए उसे बालकनी से देखा और किस्सा ख़त्म। असल किस्सा उसके बाद उस ट्रैफिक जाम से शुरू होता है जो आपकी बीवी की ज़बान से भी लंबा होता है। बारिश ख़त्म हो जाती है मगर जाम अगली बारिश आने तक ख़त्म नहीं होता। कानपुर में बिजली कड़कती है और मेरठ का बिजली विभाग एहतियातन सारे शहर की बिजली काट देता है। यहां वहां कब्रों में धंसे खैनी-जर्दे के खाली पाऊच गंदे पानी के साथ सतह पर आ आपका मुंह चिढ़ाने लगते हैं। ऐसी एक-आध बारिश के बाद अगली बरसात की अटकल में नाचता मोर आपको खूबसूरत कम और गैरज़िम्मेदार ज़्यादा है। और कल तक पसीने में भीगकर बारिश की दुआ मांगने वाले शख्स के भी बारिश के नाम पर अब पसीने छूटने लगते हैं।
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